Saturday 30 July 2011

बदलते दौर में....

अंधेरे से रोशनी की ओर जाना कितना तकलीफदेह है? ऐसा कभी रोशनी से अंधेरे में पहुँचकर महसूस नहीं होता है। बस आँखों को अंधेरे से अभ्यस्त होने की ही दरकार होती है। मोटे पर्दों की दरारों से आती रोशनी ने सौम्या को तड़पा दिया। उसने छटपटाकर आँखों को हथेली से ढाँप लिया। लेकिन रोशनी के होने को यूँ अनहुआ नहीं किया जा सकता है ना... वो बिस्तर पर अधलेटी हुई और खिड़की पर पड़े पर्दे को थोड़ा और तान कर रोशनी की दरार को भर दिया। रात भर दर्द में तड़पती रही थी, बहुत सुबह जाकर जरा नींद लगी थी। पता नहीं वो नींद थी या उसका भ्रम... ? क्योंकि नींद टाँड पर अधूरी-सी पड़ी उसे घूर रही थी, वो भी क्या करें वो खुद भी रात भर अंधेरे को घूरती रही थी, बस सुबह होते-होते ही नींद लगी थी और... आँखें किरकिरा रही थी, नींद से और रोने से। दिन भर में जरा-जरा सी बात पर न जाने कितनी बार मन कच्चा हुआ था और बात-बेबात आँखें भरती रही। आज तीसरा दिन है... हर घड़ी यूँ लगता है जैसे ये बेचैनी कुछ कम हुई है, लेकिन अगले ही क्षण महसूस होता है कि या तो वो उतनी ही है या फिर पिछले गुजरे क्षण से कुछ ज्यादा...। रणभूमि बना हुआ है उसका मन, मस्तिष्क और शरीर भी... वो लड़ रही है लगातार खुद से... घायल है, अपने दर्द से निज़ात नहीं है उसे लेकिन दुनियादारी का भी तो हिस्सा है वह... अपने दर्द के साथ घड़ी-दो-घड़ी अलग और अकेले रह पाने का विचार तक उसके जीवन में लक्ज़री की तरह लगता है।
घड़ी की तरफ नजर घुमाकर देखा असमंजस-सा लटका मिला... आज ऑफिस जाए या न जाए...? एक ही क्षण में कई प्रोज एंड कॉन्स कौंध गए। नहीं गई तो यहाँ भी क्या करूँगी। श्वेता कल ही वीकएंड मनाने गई है, वो अब कल ही आएगी। दिनभर अकेले... खैर असमंजस की सूली पर लटकी हुई सौम्या ने आखिरकार अभिषेक को फोन लगा ही दिया...।
हलो स्वीटहार्ट – अभिषेक का वही चापलूस स्वर
अमूमन सौम्या उसे नजरअंदाज कर जाती है, लेकिन आज भड़क गई – यार हर बार का मजाक मुझे अच्छा नहीं लगता। तुम मुझे मेरे नाम से क्यों नहीं बुलाते?
वो थोड़ा अचकचाया, फिर उसकी आवाज में अकड़ आ गई, एक तटस्थ रूखापन – मैं तुम्हें ही फोन करने वाला था। तुमने धूप में अंधेरा की रिपोर्ट तैयार कर ली है? आज उसे सब्मिट करना है। जरा जल्दी आ जाना। - लहजा आदेशात्मक था।
सौम्या समझ गई थी, गलती कहाँ हुई थी। उसने अपने लहजे में भरसक नम्रता लाकर कहा था – अभि... आज मैं नहीं आ रही हूँ। - लहजा नर्म था, लेकिन इरादा दृढ़...।
तुम्हें आना तो पड़ेगा... आज ही रिपोर्ट सब्मिट करनी है, एनीहाउ... – वो थोड़ा-सा पसीजा तो था, लेकिन अड़ अभी भी कायम थी।
प्लीज अभि... आय एम नाट फीलिंग वैल... कैन यू डू मी ए फेवर... ? – अनचाहे ही सौम्या की आवाज से चाशनी टपकने लगी थी। कई बार वो खुद को बड़ी अजनबी लगती थी। खुद से कई बार चौंक जाया करती थी, जैसा अभी हुआ।
उसने बड़े अनमनेपन से कहा – बोलो...
देखो रॉ रिपोर्ट तो तैयार है, मेरे फोल्डर में उसी नाम से सेव है... तुम उसे पढ़ लोगो तो समझ जाओगे...- फिर थोड़ा पॉज देकर बोली – यार तुम उसे पॉलिश करके सब्मिट कर दोगे क्या...? प्लीज....।
यार... मेरे पास... – उसकी बात बीच में ही लपक कर सौम्या ने – प्लीज...प्लीज...प्लीज की रट लगा दी।
वो पिघलकर घी हो गया। मुस्कुराकर कहा – ओके, बट कंपेंसेट कैसे करोगी?
सौम्या फिर तिलमिलाई, लेकिन फिर खुद को संयत कर लिया। उसने भी मुस्कुराकर जवाब दिया – लंच इन ब्लू हैवन... बाय एंड थैंक्य – और तुरंत ही फोन काट दिया।
क्रमशः