Sunday 17 April 2011

भरीपूरी प्यास....! - 4

होली के एक दिन पहले की याद है, मुझे रंग पसंद है, इसलिए होली भी। अगले दिन तो कॉलेज बंद होना था, इसलिए एक दिन पहले सुबह जल्दी उठ गई थी। बिल्डिंग के बच्चों को चॉकलेट का लालच देकर गुब्बारों में पानी भरवाया था। भाभी के बड़े से शॉपिंग बैग में सारे गुब्बारे रखकर मैं ऑटो से कॉलेज पहुँची थी। कॉरीडोर में ही तुम, आस्था, तपन, संजना, प्रतीक राजबीर और रोशनी दिखे थे। ऑटो वाले को पैसे दिए और अपने बैग में से गुब्बारे निकाल-निकाल कर मैं फेंकने लगी थी। इस काम में मैं इतनी मशगूल हो गई थी कि मुझे ये भी ध्यान नहीं रहा कि सामने से डॉ. त्रिपाठी तेजी से चले आ रहे हैं और रोशनी पर गुब्बारे का निशाना साधा तो डॉ. त्रिपाठी को लगा... वे एकाएक तमतमा गए... मुझे डर लगा... पता नहीं क्या कहेंगे। कितने सख्त तो थे वे... उनकी क्लास में बैठते हुए मुझे तो हमेशा डर लगता था, क्योंकि क्लास में बैठे हुए भी मेरा ध्यान पता नहीं कहाँ-कहाँ हुआ करता था। और वो पता नहीं कैसे ताड़ लेते थे कि आपका ध्यान क्लास में नहीं है। और मैं पता नहीं कितनी बार पकड़ाई में आई कि वो मुझसे चिढ़ने लगे थे... तो अब... ! तभी तुम तेजी से लपकते हुए उनके पास गए और अपने हाथ तो पीछे कर मुझे भी इशारे से बुलाया। तुमने उनके पैर छुए... सर होली के लिए अग्रिम शुभकामना... और फिर मुझे भी आँखों के इशारे से उनके पैर छूने का आदेश दिया। डॉ. त्रिपाठी नर्म हो गए थे खूब सारे आशीर्वाद दिए थे, तुम्हें तो खैर... लेकिन मुझे भी।
मन... तुम जानते हो, मुझे उस क्षण लगा कि काश तुम मेरे पिता-बड़े भाई होते... कितनी बार और कितने सालों तक मैंने तुममें अपने सिर पर तनी छत की तरह का आश्वासन पाया था। कितनी ऊष्मा... कितना गहरा आश्वासन...बस होने-करने की आजादी... बिना किसी तरह के सवाल-जवाब के... बिना डर, बिना अपराध के अहसास के... तुम गलती करो... मैं हूँ ना संभालने के लिए। अदृश्य सीमाओं से परे के आसमान को नाप पाने की सहूलियत क्या होती है, वहाँ उलझने से बिना डरे करने की आजादी.... बस तुम ही दे सकते थे। पता नहीं तुमने कभी महसूस किया या नहीं, बस इतना-सा आश्वासन ही आपको कैसे सहज-सरल औऱ तरल कर देता है, कितने बच्चों को मिल पाता है? मुझे नहीं मिल पाया। बहुत सारे लोगों की इज़्ज़त और विश्वासों के बोझ को लेकर एक लड़की कैसे गलतियाँ कर सकती है? यूँ भी लड़कियों की गलती तो हमेशा-से ही अक्षम्य होती है। मतलब गलती करने की गलती तो वे कभी कर ही नहीं सकती, हमेशा ही अच्छी लड़की के सिंड्रोम से ग्रस्त मैं... पता नहीं कहाँ-कैसे तुम्हारे प्यार में बुरी लड़की होती चली गई थी।
क्रमशः

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